धर्म
धर्म
Vipasana Dohe- Dharma
जागो लोगों जगत के बीती काली रात,
हुआ उजाला धर्म का मंगल हुआ प्रभात ।
आओ प्राणी विश्व के सुनो धर्म का ज्ञान,
इसमें सुख है शांति है मुक्ति मोक्ष निर्वाण ।
यह तो वाणी धर्म की, बुद्धि ज्ञान की ज्योत,
अक्षर अक्षर में भरा मंगल ओत प्रोत ।
मीठी वाणी धर्म की मिसरी के से बोल,
कल्याणी मंगलमयी भरा अमृत रस घोल ।
आओ मानव मानवी चलें धर्म के पंथ,
इस पथ चलते सत्पुरुष इस पथ चलते संत ।
धर्म पंथ ही शांति पथ धर्म पंथ सुख पंथ,
धर्म पंथ पर जो चले करे दुखों का अंत ।
इस पथ मंगल मूल है इस पथ है कल्याण,
कदम कदम चलते हुए पाये सुखों की खान ।
धर्म धर्म तो सब कहें पर समझे न कोए,
निर्मल मन काया चरण शुद्ध धर्म है सोए ।
मैं भी दुखिया न रहूँ जगत न दुखिया होए
जीवन जीने की कला सत्य धर्म है सोए ।
धर्म न हिन्दू बौद्ध है सिख न मुस्लिम जैन,
धर्म चित्त की शुद्धता धर्म शांति सुख चैन ।
सम्प्रदाय न धर्म है धर्म न बने दीवार,
धर्म सिखाये एकता धर्म सिखाये प्यार ।
जात पात न धर्म है धर्म न छुआ छूत,
धर्म पंथ पर जो चले होवे पावन पूत ।
जाति वरण का गोत्र का जहां भेद न होय,
जो सबका सबके लिए धर्म शुद्ध है सोए ।
मानव मानव में जहां भेद भाव न होए,
निजहित परहित सर्वहित सत्य धर्म है सोय ।
अपना भी होवे भला भला सभी का होए,
जिससे सबका हो भला शुद्ध धर्म है सोए ।
धन्य होयें माता पिता धन्य होयें कुल गोत्र,
धर्म पुरुष जन्मे जहाँ लिए ज्ञान की ज्योत ।
यही धर्म की परख है यही धर्म का माप,
जन जन का मंगल करे, दूर करे संताप ।
कुदरत का कानून है, इससे बचा न कोय,
मल मन व्याकुल ही रहे, निर्मल सुखिया होए |
यह ऋत है यह नियम है सब पर लागु होए
धर्म धार सुखिया रहे छूटे व्याकुल होए |
निर्धन या धनवान हो अनपढ़ या विद्वान,
जिसने मन मैला किया उसके व्याकुल प्राण ।
हिन्दू हो या बौद्ध हो मुस्लिम हो या जैन,
जब जब मन मैला करे तब तब हो बैचैन ।
गोरा काला गेहुआँ मनुज मनुज ही होए,
जो जो मन मैला करे सो ही दुखिया होये ।
वर्ण रंग से मानवी ऊंच नींच न होए,
काली गोरी गाय का दूध एक सा होए ।
धर्मवंत तू है वही, शील वंत जो होए,
काया वाणी चित्त की, कर्म न दूषित होए ।
काया कर्म सुधार ले, वाचक कर्म सुधार,
मन के करम सुधर ले, यही धरम का सार ।
सदाचरण ही धर्म है, दुराचरण ही पाप,
सदाचरण से सुख जगे, दुराचरण दुःख से पाप ।
परोपकार ही पुण्य है, परपीड़न ही पाप,
पुण्य किए सुख ही जगे, पाप किये संताप ।
तीन बात बंधन बंधे, राग द्वेष अभिमान,
तीन बात बंधन खुले, शील समाधी ज्ञान ।
प्रज्ञा शील समाधि की, बही त्रिवेणी धार,
डुबकी मारे सो तरे, हो भव सागर पार ।
गंगा जमुना सरस्वती, शील समाधि ज्ञान,
तीनों संगम होएं तो, प्रगटे पद निर्वाण ।
शील धर्म पालन भला, निर्मल भली समाधि,
प्रज्ञा तो जागी भली, दूर करे भव व्याधि ।
धर्म छूटे तो सुख छूटे, आकुल व्याकुल होए,
धर्म जगे तो सुख जगे, हल्कित पुल्कित होए ।
मंगल मंगल धर्म का, फल निर्मल ही होए,
मानस की गांठे खुले, अंतर निर्मल होए ।
अंतर गंगा धर्म की, लहर लहर लहराय,
राग द्धेष के मोह के, मैल सभी धुल जाएं ।
जीयें जीवन धर्म का, रहे पाप से दूर,
चित्त द्वारा निर्मल रहे, मंगल से भरपूर ।
धर्मवान तो पुरुष हो, धर्मचारिणी नारी,
धर्मवंत संतान हो, सुखी रहे परिवार ।
धर्म सदा मंगल करे, धर्म करे कल्याण,
धर्म सदा रक्षा करे, धर्म बड़ा बलवान ।
धर्म सदृश रक्षक नहीं, धर्म सुदृश न ढाल ,
धर्म पालकों की सदा, धर्म रहे रखवाल ।
प्रलयंकारी बाढ़ में, धर्म सद्रश्य द्वीप,
काल अँधेरी रात में, धर्म सा सद्रश्य दीप।
धर्म हमारा ईश्वर, धर्म हमारा नाथ ,
हम तो निर्भय ही रहे, धर्म हमारे साथ ।
धर्म हमारा बंधू है, सखा सहायक मीत ,
चले धर्म की रीत ही, रहे धर्म से प्रीत ।
धर्म धार निर्मल बने, राजा हो या रंक,
रोग शोग चिंता मिटे, निर्भय होए निशंख ।
यही धर्म का नियम है, यही धर्म की रीत,
जो धारे निर्मल बने, पावन बने पुनीत ।
धर्म न मंदिर मे मिले, धर्म न हाट बिकाए ,
धर्म न ग्रंथों में मिले, जो धारे सो पाये ।
अपना रक्षित धर्म ही, अपना रक्षक होए,
धारण करें धर्म को, धर्म सहायक होए ।
From the life and work of Shri S.N. Goenka Ji.
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