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Hanuman Ji

हनुमान सहस्त्रनामावली

  1. हनुमान्: – विशाल और टेढी ठुड्डी वाले ।
  2. श्रीप्रद: – शोभा प्रदन करने वाले ।
  3. वायुपुत्र: – वायु के पुत्र
  4. रुद्र: – जो रुद्र के अवतार हैं (हनुमान जी एकादश रुद्र हैं)
  5. अनघ: -पाप से रहित
  6. अजर: – वृद्धावस्था से रहित
  7. अमृत्य: – मृत्यु से रहित
  8. वीरवीर: – वीरों में अग्रणी
  9. ग्रामवास: – गाँवों में निवास करने वाले
  10. जनाश्रय:- समस्त जनों को आश्रय प्रदान करने वाले
  11. धनद: -धन धान्य देनेवाले
  12. निर्गुण: -सतोगुण,रजोगुण एवं तमोगुण से रहित ।
  13. अकाय: -भौतिक देह से रहित ।
  14. वीर: – पराक्रमी ।
  15. निधिपति: – नवनिर्धायों के स्वामी ।
  16. मुनि: – वेद शास्त्रों के गूहार्थ के ज्ञाता ।
  17. पिंगाक्ष: – पीले-पीले नेत्रों वाले ।
  18. वरद: – मनोवांछित वरदान देने वाले ।
  19. वाग्मी: – कुशल वक्ता ।
  20. सीताशोकविनाशन: – सीता जी के शोक को मिटाने वाले ।
  21. शिव: – मंगलमय ।
  22. सर्व: -सर्वस्वरूप ।
  23. पर: – प्रकृति से भी परे ।
  24. अव्यक्त: -अव्यक्त स्वरूपवाले ।
  25. व्यक्ताव्यक्त: -जो श्रद्धालु भक्तों के समक्ष व्यक्त तथा अभक्त्जनों के लिए अव्यक्त है ।
  26. रसाधर:- पृथ्वी को धारण करने वाले ।
  27. पिंगरोम: -पीले रोम वाले ।
  28. पिंगकेश: -पीले केशों वाले ।
  29. श्रुतिगम्य: -जो श्रुतियों द्वारा जानने योग्य है ।
  30. सनातन: -सदैव विद्यमान रहने वाले ।
  31. अनादि: – आदि से रहित ।
  32. भगवान: -ऐश्वर्य मिक्त ।
  33. देव:- अत्यंत दीप्त स्वरूप ।
  34. विश्वहेतु: -जगत् के मूल कारण ।
  35. निरामय: -नीरोग ।
  36. आरोग्यकर्ता: – आरोग्य प्रदान करने वाले ।
  37. विश्वेश:- विश्व के ईश्वर ।
  38. विश्वनाथ: -संसार के स्वामी ।
  39. हरीश्वर: -वानरों के स्वामी ।
  40. भर्ग:- तेज स्वरूप ।
  41. राम: – जिनमें भक्तलोग रमण करते हैं ।
  42. रामभक्त:- राम के भक्त ।
  43. कल्याणप्रकृति: – कल्याण करना जिनका सवभाव है ।
  44. स्थिर: -पर्वत के समान अचल ।
  45. विश्वम्भर: – विश्व का भरण –पोषण करनेवाले ।
  46. विश्वमूर्ति: -विश्व जिनकी मूर्ति है।
  47. विश्वाकार: – जो सर्वस्वरूप हैं ।
  48. विश्वप: – जो विश्व का पालन करते हैं।
  49. विश्वात्मा: -जो विश्व की आत्मा हैं।
  50. विश्वसेव्य: -सारे विश्व के सेवनीय।
  51. विश्व:- जो विश्व हैं।
  52. विश्वहर: – विश्व के हर्ता ।
  53. रवि: – सुर्यस्वरूप ।
  54. विश्वचेष्ट: – विश्व के हित में चेष्टा करनेवाले ।
  55. विश्वगम्य: -विश्व के प्राणिमात्र के प्राप्त करने योग्य ।
  56. विश्वध्येय: -सबके ध्यान करने योग्य ।
  57. कलाधर: – कलाओं को धारण करनेवाले ।
  58. प्लवंगम: – उछलते- कूदते चलनेवाले ।
  59. कपिश्रेष्ठ: – वानरों में श्रेष्ठ ।
  60. ज्येष्ठ: – महान् ।
  61. वैद्य: -भवरोग के चिकित्सक ।
  62. वनेचर: – सीताजी की खोज में वन-वन भटकने वाले ।
  63. बाल: – बालक के समान निश्चल अथवा बालरूप हो सुरसा के मुँह में प्रवेश करनेवाले ।
  64. वृद्ध: – बढ़कर पर्वताकार होनेवाले ।
  65. युवा: – सदा तरुण स्वरूप ।
  66. तत्वम्: – संसार के कारण स्वरूप ।
  67. तत्त्वगम्य: -तत्वरूप में जानने योग्य ।
  68. सखा: -सबके सखा ।
  69. अज: -अजन्मा ।
  70. अञ्जनासूनु: – माता अञ्जना के पुत्र ।
  71. अव्यग्र:- कभी व्यग्र न होनेवाले ।
  72. ग्रामख्यात: – गाँव-गाँव में प्रसिद्ध ।
  73. धराधर: – पृथ्वी को धारण करनेवाले- पर्वताकार ।
  74. भू: – पृथ्वीलोकस्वरूप ।
  75. भुव: – भुवर्लोकस्वरूप ।
  76. स्व: – स्वर्गलोकस्वरूप ।
  77. महर्लोक: – महर्लोकस्वरूप ।
  78. जनलोक: – जनलोकस्वरूप ।
  79. तप: तपोलोकस्वरूप ।
  80. अव्यय: – अविनाशीस्वरूप ।
  81. सत्यम्:- संतों के लिए हितकर ।
  82. ॐकारगम्य: – ॐकारके द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
  83. प्रणव: – ॐकारस्वरूप ।
  84. व्यापक: – सर्वव्यापी ।
  85. अमल: – दोषरहित ।
  86. शिवधर्म प्रतिष्ठाता: – पाशुपत अथवा कल्याण- धर्म को प्रतिष्ठित करनेवाले ।
  87. रामेष्ट:- जिनके श्रीराम इष्टदेव हैं ।
  88. फाल्गुन प्रिय: -जो अर्जुन के प्रिय हैं ।
  89. गोष्पदीकृतवारीश: – समुद्र को जलपूरित गोपद के समान लाँघनेवाले ।
  90. पूर्णकाम: -जिनकी सारी कामनाएँ पूर्ण हैं।
  91. धरापति: -पृथ्वी के स्वामी ।
  92. रक्षोघ्न: -राक्षसों को मारनेवाले ।
  93. पुण्डरीकाक्ष: – श्वेत कमल के समान नेत्रवाले ।
  94. शरणागतवत्सल: – शरण में आए हुये पर कृपा करनेवाले ।
  95. जानकीप्राणदाता: – जानकीको जीवन प्रदान करनेवाले ।
  96. रक्षःप्राणापहारक: – राक्षसों का प्राण – नाश करनेवाले ।
  97. पूर्ण:- पूर्णकाम ।
  98. सत्य:- सत्यस्वरूप ।
  99. पीतवासा: -पीला वस्त्र धारण करनेवाले ।
  100. दिवाकर समप्रभ: – सूर्य के समान तेजस्वी ।
  101. देवोद्यानविहारी: – देवताओं के नंदन-वन में विहार करने वाले ।
  102. देवताभयभञ्जन: – देकताओं के भय को नष्ट करनेवाले ।
  103. भक्तोदयो: – भक्तों की उन्नति करनेवाले ।
  104. भक्तलब्ध: – भक्तों के दवारा प्राप्त ।
  105. भक्तपालन तत्पर: – भक्तों की रक्षा में तत्पर ।
  106. द्रोणहर्ता:- द्रोणाचलको उखाड़कर लानेवाले ।
  107. शक्तिनेता – शक्तियों के संचालक ।
  108. शक्तिराक्षसमारक: -शक्तिशाली राक्षसों को मारनेवाले ।
  109. अक्षघ्न: -अक्षकुमार को मारनेवाले ।
  110. रामदूत: -भगवान श्री रामचंद्र के दूत ।
  111. शाकिनी जीवहारक: – शाकिनी का प्राण हरण करनेवाले ।
  112. बुबुकारहताराति: – बुबुकार-ध्वनि से शत्रुका नाश करनेवाले ।
  113. गर्वपर्वत प्रमर्दन: -गर्वरूपी पर्वत्को चूर-चूर करनेवाले ।
  114. हेतु: – कारणरूप ।
  115. अहेतु: – कारणरहित ।
  116. प्रांशु: – बहुत उन्नत ।
  117. विश्वभर्ता: – विश्व का भरण पोषण करनेवाले ।
  118. जगद्गुरु: – सारे संसार के गुरु ।
  119. जगन्नेता: – संसार के नेता ।
  120. जगन्नाथ: – संसार के स्वामी ।
  121. जगदीश: – जगत् के ईश ।
  122. जनेश्वर: – भक्तों के ईश्वर ।
  123. जगद्धित: – संसार का हित करनेवाले ।
  124. हरि: – पापों को हरनेवाले ।
  125. श्रीश: – शोभा के स्वामी।
  126. गरुडस्मय भञ्जन: – गरुड़ के गर्व को नष्ट करनेवाले ।
  127. पार्थध्वज: – अर्जुन के ध्वज चिन्ह ।
  128. वायुपुत्र: – वायु के पुत्र ।
  129. अमितपुच्छ: – अपरिमित पूँछवाले ।
  130. अमित विक्रम: – असीम पराक्रम वाले ।
  131. ब्रह्मपुच्छ: – जिनकी पूँछ वर्द्धनशील है ।
  132. परब्रह्मपुच्छ: – जिनका परब्रह्म आधार है ।
  133. रामेष्टकारक: – जो श्रीरामके अभीष्ट कार्य को सिद्ध करते हैं ।
  134. सुग्रीवादियुतो: – सुग्रीवादि वानरों से युक्त ।
  135. ज्ञानी: – ज्ञान सम्पन्न ।
  136. वानर: – वनमें रहनेवालों की रक्षा करनेवाले ।
  137. वानरेश्वर: -वानरों के स्वामी ।
  138. कल्पस्थायी: – कल्पपर्यंत रहनेवाले ।
  139. चिरञ्जीवी: – चिरकालतक जीवित रहने वाले ।
  140. तपन:- सुर्य सदृश तेजस्वी ।
  141. सदाशिव: – सदा कल्याणस्वरूप ।
  142. सन्नत: – विद्या के दवारा जो सम्यक् रूप से विनयानवत हैं ।
  143. सद्गति: – संतों की गति हैं ।
  144. भुक्तिमुक्तिद: – भुक्ति और मुक्ति को देनेवाले।
  145. कीर्तिदायक: – कीर्तिप्रदान करनेवाले ।
  146. कीर्ति: – कीर्तिस्वरूप ।
  147. कीर्तिप्रद: – यशस्वी बनानेवाले ।
  148. समुद्र: – जो श्रीराम की मुद्रा या मुद्रिका साथ लिये हुए हैं ।
  149. श्रीपद: – बुद्धि या ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले ।
  150. शिव: – संसार का उच्छेद करनेवाले ।
  151. भक्तोदय: – भक्त के लिये प्रकट होनेवाले ।
  152. भक्तगम्य: – भक्त द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
  153. भक्तभाग्यप्रदायक: -भक्त के लिये भाग्य प्रदायक ।
  154. उदधिक्रमण:- समुद्र लाँघने वाले ।
  155. देव:- देवस्वरूप ।
  156. संसारभयनाशन: – संसार का भयनाश करनेवाले ।
  157. वार्धिबन्धनकृद्: – समुद्र पर सेतु बाँधनेवाले।
  158. विश्वजेता: – विश्व को जीतनेवाले ।
  159. विश्वप्रतिष्ठित: – विश्व में प्रतिष्ठित ।
  160. लङ्कारि: – लंकाके शत्रु ।
  161. कालपुरुष: – कालरूपी पुरुष।
  162. लङ्केशगृह भञ्जन: – रावण के महलों को नष्ट करनेवाले ।
  163. भूतावास: भूतों के आवास – स्थल हैं ।
  164. वासुदेव: – विश्व में व्यापक ।
  165. वसु: – वसुस्वरूप ।
  166. त्रिभुवनेश्वर: – त्रिभुवन के स्वामी ।
  167. श्रीरामस्वरूप: – जो श्री राम तुल्य हैं ।
  168. कृष्ण:- चित्त को आकर्षित करनेवाले ।
  169. लङ्काप्रासादभञ्जन: – लंका के राक्षसों के महलों का विध्वंस करनेवाले ।
  170. कृष्ण: – कृष्णस्वरूप ।
  171. कृष्णस्तुत: – कृष्ण के दवारा स्तुति किये गये ।
  172. शान्त: – शांतस्वरूप ।
  173. शान्तिपद: – शांति प्रदान करनेवाले ।
  174. विश्वपावन: – विश्व को पवित्र करनेवाले ।
  175. विश्वभोक्ता: – सारे भोग्य पदार्थों के भोक्ता ।
  176. मारघ्न:- कामदेव का हनन करनेवाले ।
  177. ब्रह्मचारी: – आजन्म ब्रह्मचारी ।
  178. जितेन्द्रिय: – जिन्होंने इन्द्रियों को जीत लिया है ।
  179. ऊर्ध्वग: – आकाश-मार्ग से गमन करनेवाले ।
  180. लाङ्गुली: – बड़ी पूँछवाले ।
  181. माली: – मालावाले ।
  182. लाङ्गूलाहत राक्षस: – पूँछ से राक्षसों को मार डालनेवाले ।
  183. समीरतनुज: – वायुदेवता के पुत्र ।
  184. वीर: – शौर्यशाली ।
  185. वीरतार: – वीर शत्रुओं को मारकर तारनेवाले ।
  186. जयप्रद: – जय प्रदान करनेवाले ।
  187. जगन्मङ्गलद: – जगत् को मङ्गल प्रदान करनेवाले ।
  188. पुण्य: – भगवन्नाम- संकीर्तन से विश्वको पवित्र करनेवाले
  189. पुण्यश्रवण कीर्तन: – जिनकी कथाओं का श्रवण – कीर्तन पुण्य प्रद है ।
  190. पुण्यकीर्ति: – जिनका यशोगान पुण्यप्रद है।
  191. पुण्यगति: – जिनकी उपासना पुण्य का फल है ।
  192. जगत्पावनापावन: – जो जगत् को पवित्र करनेवालोंको पावन बनाते हैं ।
  193. देवेश: – देवताओं के स्वामी ।
  194. जितमार:- कामदेव को जीतनेवाले ।
  195. रामभक्ति विधायक: – श्रीराम भक्ति का विधान करनेवाले ।
  196. ध्याता: – रात- दिन श्रीराम का ध्यान करनेवाले ।
  197. ध्येय: – मुनियों के द्वारा ध्येय ।
  198. लय: – अपनेमें अखिल चराचर को विलीन करनेवाले ।
  199. साक्षी: – सर्वद्रष्टा ।
  200. चेता: – सर्वज्ञ ।
  201. चैतन्य विग्रह: – चिन्मय शरीर वाले ।
  202. ज्ञानद: – ब्रह्मज्ञान के दाता ।
  203. प्राणद: -प्राण (बल) प्रदान करनेवाले ।
  204. प्राण: – जिससे प्राणी प्राणवाले हैं , अर्थात् प्राणस्वरूप ।
  205. जगत्प्राण: – जगत् के प्राण ।
  206. समीरण: – वायुरूप ।
  207. विभीषणप्रिय: – विभीषण के प्यारे ।
  208. शूर: – शत्रुओं को रण में सुलानेवाले ।
  209. पिप्पलाश्रय सिद्धिद: – ( आनन्दरामायण के मनोहरकाण्डके अनुसार ) अश्वत्थ को गृह मानकर साधना करनेवाले साधक को सारी सिद्धियों प्रदान करनेवाले ।
  210. सिद्ध: -सिद्ध स्वरूप ।
  211. सिद्धाश्रय: – सिद्धों के आश्रय ।
  212. काल: – यमरूप ।
  213. महोक्ष: – महान् धर्मरूपी बैलवाले
  214. कालाजान्तक: – काल से उत्पन्न जरा- व्याधि आदि दोषों का अन्त करनेवाले ।
  215. लङ्केशनिधनस्थायी: – रावण के विनाश के लिये स्थिरचित्त ।
  216. लङ्कादाहक: – लंका को जलानेवाले ।
  217. ईश्वर: – त्रिलोकी में परम ऐश्वर्यशाली ।
  218. चन्द्रसूर्यग्निनेत्र: – चंद्र,सूर्य और अग्निरूप तीन नेत्रोंवाले शिवस्वरूप ।
  219. कालाग्नि:- मृत्युकारी अग्निरूप ।
  220. प्रलयान्तक: – प्रलय का अंत करनेवाले अर्थात् भक्तों को जन्म-मृत्यु से रहित करनेवाले।
  221. कपिल: – काले- पीले वर्ण के रोम से युक्त ।
  222. कपिश: – श्याम-पीतवर्ण मिश्रित कपिशवर्ण ।
  223. पुण्य राशि: – पुण्यकी राशि ।
  224. द्वादशराशिग: – द्वादश राशियों के ज्ञाता अर्थात् ज्योतिषशास्त्र के जाननेवाले ।
  225. सर्वाश्रय: – सबके आश्रय स्थान ।
  226. अप्रमेयात्मा: – अनुपम शरीरवाले ।
  227. रेवत्यादिनिवारक: – रेवती-पूतना आदि ग्रह- दोषों का निवारण करनेवाले ।
  228. लक्ष्मण प्राणदाता: – संजीवनी द्वारा लक्ष्मणा जी को प्राण देनेवाले ।
  229. सीताजीवन हेतुक: – श्री जानकी जी को श्रीराम का संदेश देकर जीवन प्रदान करनेवाले ।
  230. रामध्येय: – श्री राम जिनका ध्यान-स्मरण करते हैं ।
  231. हृषिकेश: – इन्द्रियों के स्वामी ।
  232. विष्णुभक्त: – विष्णुके भक्त ।
  233. जटी: – जटावाले ।
  234. बली – बलशाली ।
  235. देवारिदर्पहा: – देवशत्रुओंके दर्प को नष्ट करनेवाले ।
  236. होता – भगवद्भक्तिका अनुष्ठान करनेवाले ।
  237. धाता: – जगत् को धारण करनेवाले ।
  238. कर्ता: – जगत् को बनानेवाले ।
  239. जगत्प्रभु: – जगत् के स्वामी ।
  240. नगरग्रामपाल: – नगर और ग्रामवासियों की रक्षा करने वाले ।
  241. शुद्ध: – शुद्धस्वरूप ।
  242. बुद्ध: – ज्ञान स्वरूप ।
  243. निरत्रप: – सलज्ज ।
  244. निरञ्जन: -अज्ञान या माया से रहित ।
  245. निर्विकल्प: – विकल्परहित ।
  246. गुणातीत: – सत्त्वादि गुणों से रहित ।
  247. भयङ्कर: – दुष्टों के लिये विकराल स्वरूपवाले ।
  248. हनुमान् – श्री राम के अनुचर ।
  249. दुराराध्य: – अभक्तों के लिये कष्ट से आराधनीय ।
  250. तपःसाध्य: – तप के द्वारा साध्य ।
  251. महेश्वर: – महान् ईश्वर ।
  252. जानकीधनशोकोत्थतापहर्ता: – जानकीधन अर्थात् श्रीराम के शोक से उत्पन्न संताप को हरने वाले ।
  253. परात्पर: – जो अव्यक्त से भी परे हैं ।
  254. वाङ्मय: – वेदशास्त्र- सरस्वतीस्वरूप ।
  255. सदसद्रूप: – सत् और असत् स्वरूप ।
  256. कारणम्: – संसार के अभिन्न निमित्तोपादन कारण ।
  257. प्रकृतेः पर: – जो त्रिगुणात्मिका प्रकृति से परे हैं ।
  258. भाग्यद: – कर्मजन्य शुभाशुभ फलों को देनेवाले ।
  259. निर्मल: – मल अर्थात् दोष से रहित ।
  260. नेता: – मार्गदर्शक ।
  261. पुच्छलङ्काविदाहक: – पुच्छ से लंकाको जलानेवाले ।
  262. पुच्छबद्धयातुधान: -पुच्छ से राक्षसों को बाँधनेवाले ।
  263. यातुधानरिपुप्रिय: – राक्षसों के शत्रु श्रीराम के प्रिय ।
  264. छायापहारी: – छायानाम की राक्षसीको मारनेवाले।
  265. भूतेश:- भूतों के स्वामी ।
  266. लोकेश: – लोकों के स्वामी ।
  267. सद्गतिप्रद: – संतों को सद्गति प्रदान करनेवाले ।
  268. प्लवङ्गमेश्वर: – वानरों के स्वामी ।
  269. क्रोध: – शत्रुओं के लिए क्रोधस्वरूप ।
  270. क्रोध संरक्तलोचन: – युद्धकाल में क्रोध से लाल नेत्रवाले ।
  271. सौम्य:- सौम्यस्वरूप ।
  272. गुरु: – अज्ञान दूर करके परमात्मदर्शन करानेवाले ।
  273. काव्यकर्ता: – कव्य-रचना करनेवाले।
  274. भक्तानां वरप्रद: – भक्तों को अभीष्ट वर प्रदान करनेवाले ।
  275. भक्तानुकम्पी: – भक्तों पर अनुकम्पा करनेवाले ।
  276. विश्वेश: – विश्वके संचालक ।
  277. पुरुहूत: – बहुत बार लोग जिनको पुकारते हैं ।
  278. पुरन्दर: – शत्रुके नगरों को ध्वस्त करनेवाले ।
  279. क्रोधहर्ता: – क्रोध को हरनेवाले ।
  280. तमोहर्ता: – अज्ञानान्धकार को दूर करनेवाले ।
  281. भक्ताभयवरप्रद: – भक्तों को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
  282. अग्नि: – अग्निस्वरूप ।
  283. विभावसु: – दिव्य तेज:स्वरूप्।
  284. भास्वान्: – प्रकाशयुक्त ।
  285. यम: – संयमस्वरूप ।
  286. निर्ॠति: – नैर्ऋतगणके स्वामी ।
  287. वरुण: – जल के देवता वरुणस्वरूप।
  288. वायुगतिमान् : – वायुके समान गतिशील ।
  289. वायु: – वायुपुत्र होने के कारण वायुस्वरूप ।
  290. कौबेर ईश्वर: – कुबेर-सम्बन्धी धन के मालिक ।
  291. रवि: – सुर्यस्वरूप ।
  292. चन्द्र: – जगत् को आह्लादित करनेवाले चंद्रस्वरूप ।
  293. कुज: – मंगल ग्रहस्वरूप ।
  294. सौम्य: – बुधग्रहस्वरूप ।
  295. गुरु: – बृहस्पतिग्रहस्वरूप ।
  296. काव्य: – शुक्रग्रहस्वरूप ।
  297. शनैश्चर: – शनिग्रहस्वरूप ।
  298. राहु: – राहुग्रहस्वरूप ।
  299. केतु: – केतुग्रहस्वरूप ।
  300. मरुत्: – वायुस्वरूप ।
  301. होता: – हवन करनेवाले ।
  302. दाता: – भक्तों के भव-बंधन को काटनेवाले ।
  303. हर्ता: – भक्तोंकी ममताको हरनेवाले ।
  304. समीरज: – पवन देवता के पुत्र ।
  305. मशकीकृतदेवारि: – देवताओं के शत्रुओं को मच्छरके समान समझनेवाले ।
  306. दैत्यारि: – दैत्यों के शत्रु ।
  307. मधुसूदन: – भक्तोंके अशुभ कर्मोंका विनाश करनेवाले ।
  308. काम: – श्रीराम भक्तिकी कामना करनेवाले ।
  309. कपि: – जल से पृथ्वीकी रक्षा करनेवाले ।
  310. कामपाल: – वीर्यरक्षक अर्थात् ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले ।
  311. कपिल: – कपिलमुनिस्वरूप ।
  312. विश्वजीवन: – विश्व के जीवन ।
  313. भागीरथीपदाम्भोज: – जिनके चरणकमल भागीरथीके समान पवित्र करनेवाले हैं ।
  314. सेतुबन्धविशारद: – सेतु बांधने में चतुर ।
  315. स्वाहा: – स्वाहास्वरूप ।
  316. स्वधा: – स्वधा स्वरूप
  317. हवि: – हवि:स्वरूप ।
  318. कव्यम्: – पितरों को दिये जाने वाले अन्नादि रूप ।
  319. हव्यवाहप्रकाशक: – देवताओंके लिये हव्य वहन करने वाले अग्नि के समान प्रकाशक ।
  320. स्वप्रकाश: – स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
  321. महावीर: – बड़े बलवान ।
  322. लघु: – लघु रूप धारण करनेवाले ।
  323. ऊर्जित:विक्रम: – सुदृढ़ा पराक्रमवाले ।
  324. उड्डीनोड्डीनगतिमान्: – आकाशमें उड़नेवालों में तीव्रगतिशाली ।
  325. सद्गति: – सम्यक रीतिसे चलनेवाले।
  326. पुरुषोत्तम्: – पुरुषों में श्रेष्ठ ।
  327. जगदात्मा: – जगत् – सवरूप ।
  328. जगद्योनि: – जगत् के कारण ।
  329. जगदन्त: – जगत् का अन्त करनेवाले ।
  330. अनन्तक: – जिनके अनन्त गुण हैं ।
  331. विपाप्मा: – पापरहित ।
  332. निष्कलङ्क: – कलङ्करहित ।
  333. महान्: – महत्तत्त्वस्वरूप ।
  334. महदहङ्कृति: – महां अहंकारतत्वस्वरूप ।
  335. खं: – आकाशतत्वस्वरूप ।
  336. वायु: – वायुतत्वस्वरूप ।
  337. पृथ्वी: – पृथ्वीतत्वस्वरूप ।
  338. आप: – जलतत्वस्वरूप ।
  339. वह्नि: – अग्नितत्वस्वरूप ।
  340. दिक्पाल: – दिशाओंका पालन करनेवाले ।
  341. क्षेत्रज्ञ: – क्षेत्रके ज्ञाता ।
  342. क्षेत्रहर्ता: – क्षेत्र का हरण करनेवाले ।
  343. पल्वलीकृतसागर: – सागर को लघु जलाशयरूप मानकर सरलतासे पार करनेवाले ।
  344. हिरण्मय: – स्वर्ण के समान कांतिवाले ।
  345. पुराण: – पुराणपुरुष ।
  346. खेचर: – आकाश में विचरण करनेवाले।
  347. भूचर: – पृथ्वीपर घूमनेवाले ।
  348. अमर: – न मरनेवाले ।
  349. हिरण्यगर्भ: – विश्वको उत्पन्न करनेवाले ब्रह्मास्वरूप ।
  350. सूत्रात्मा: – सर्वव्यापक ।
  351. विशाम्पति: राजराज: – मनुष्योंका पालन करनेवाले राजाधिराज ।
  352. वेदान्तवेद्य: – वेदान्त शास्त्रद्वारा जानने योग्य ।
  353. उद्गीथ: – ॐकारस्वरूप ।
  354. वेदवेदाङ्ग पारग: – चारों वेदों और छहों वेदाङ्गों में पारंगत ।
  355. प्रतिग्राम स्थिति: – प्रत्येक गाँव में स्थित रहनेवाले ।
  356. सद्यः स्फूर्तिदाता: – तत्काल स्फूर्ति प्रदान करनेवाले ।
  357. गुणाकार: – गुणोंकी खान ।
  358. नक्षत्रमाली: – सत्ताईस नक्षत्रोंकी मालावाले ।
  359. भूतात्मा: – प्राणियों की आत्मा ।
  360. सुरभि: – कामधेनुस्वरूप ।
  361. कल्पपादप: – भक्तों का मनोरथ पूर्ण करनेवाले कल्पवृक्षस्वरूप ।
  362. चिन्तामणि: – चिंतामणिस्वरूप ।
  363. गुणनिधि: – गुणोंकी खानि ।
  364. प्रजाधार: – प्रजा के आधारभूत ।
  365. अनुत्तम: – जिनसे उत्तम कोई नहीं है अर्थात् सर्वश्रेष्ठ ।
  366. पुण्यश्लोक: – पुण्यकीर्तिवाले ।
  367. पुराराति: – पुरनामक राक्षस के शत्रु शिवस्वरूप ।
  368. ज्योतिष्मान्: – ज्योति:स्वरूप ।
  369. शर्वरीपति: – चन्द्रस्वरूप ।
  370. किल्किलाराव सन्त्रस्त भूत प्रेत पिशाच: – किल-किल शब्दसे भूत-प्रेत- पिशाचादिको संत्रस्त करनेवाले ।
  371. ऋणत्रयहर: – भक्तोंके तीनों ऋणों को हरनेवाले ।
  372. सूक्ष्म: – सूक्ष्मस्वरूप ।
  373. स्थूल: – स्थूलस्वरूप ।
  374. सर्वगति: – सर्वत्र गतिवाले ।
  375. पुमान्: – पुरुषार्थी ।
  376. अपस्मारहर: – अपस्मार (मिरगीरोग ) को हरने वाले ।
  377. स्मर्ता: – भगवान् का स्मरण करनेवाले ।
  378. श्रुति: – वेदस्वरूप ।
  379. गाथा: – स्तोत्रस्वरूप ।
  380. स्मृति: – स्मृतिस्वरूप ।
  381. मनु: – मंत्रस्वरूप ।
  382. स्वर्गद्वारम्: – स्वर्ग के द्वारस्वरूप ।
  383. प्रजाद्वार: – प्रजा अर्थात् संतति प्रदान करनेवाले ।
  384. मोक्षद्वार: – मोक्ष प्रदान करनेवाले ।
  385. यतीश्वर: – सन्यम करनेवालों में अतिश्रेष्ठ ।
  386. नादरूप: – नाद-ब्रह्मस्वरूप ।
  387. परम: – मोक्षस्वरूप।
  388. परब्रह्म: – परब्रह्मस्वरूप
  389. ब्रह्म: – सर्वव्यापक ।
  390. ब्रह्मपुरातन: – आदिकारणरूप पुरातन ब्रह्म ।
  391. एक: – अद्वितीय ।
  392. अनेक: – अनेकरूप ।
  393. जन: – भक्तस्वरूप ।
  394. शुक्ल: – शुक्लस्वरूप ।
  395. स्वयं ज्योति: – स्वयं प्रकाशस्वरूप ।
  396. अनाकुल: – व्याकुल न होनेवाले ।
  397. ज्योति: – प्रकाशस्वरूप ।
  398. अनादिर्ज्योति: – सब प्रकारकी ज्योतिके मूलभूत अनादि ज्योति ।
  399. सात्त्विक: – सात्त्विक रूपमें पालनकर्ता ।
  400. राजस: – राजसरूप में उत्पन्न करनेवाले ।
  401. तम: – तमोरूप में संहारकर्ता ।
  402. तमोहर्ता: – तमोगुणका नाश करनेवाले ।
  403. निरालम्ब: – आश्रयरहित ।
  404. निराकार: – आकाररहित ।
  405. गुणाकार: – गुणोंकी खानि
  406. गुणाश्रय: – तीनों गुणोंके आश्रय ।
  407. गुणमय: – सद्गुणोंसे सम्पन्न ।
  408. बृहत्कर्मा: – महान् कार्य करनेवाले ।
  409. बृहद्यशा: – विस्तीर्ण कीर्तिवाले ।
  410. बृहद्धनु: – बड़ी ठुड्डीवाले ।
  411. बृहत्पाद: – लम्बी टाँगोंवाले ।
  412. बृहन्मूर्धा: – बड़े मस्तकवाले ।
  413. बृहत्स्वन: – बड़ा शब्द करनेवाले ।
  414. बृहत्कर्ण: – बड़े कानवाले ।
  415. बृहन्नास: – लम्बी नासिकावाले ।
  416. बृहद्बाहु: – लम्बी भुजावाले ।
  417. बृहत्तनु: -विशाल देहधारी ।
  418. बृहज्जानु: – बड़े घुटनोंवाले ।
  419. बृहत्कार्य: – महान् कार्य करनेवाले ।
  420. बृहत्पुच्छ: – लम्बी पूँछवाले ।
  421. बृहत्कर: – लम्बे हाथोंवाले ।
  422. बृहद्गति: – तीव्र गतिवाले ।
  423. बृहत्सेव्य: – महापुरुषों के द्वारा सेव्य ।
  424. बृहल्लोक फलप्रद: – सम्पूर्ण लोकरूप फल देनेवाले ।
  425. बृहच्छक्ति: – महान् शक्तिशाली ।
  426. बृहद्वाञ्छाफलद: – बड़ी-बड़ी इच्छाओं को पूर्ण करनेवाले ।
  427. बृहदीश्वर: – महान् सामर्थ्यवान ।
  428. बृहल्लोकनुत: – असंख्य लोगोंके द्वारा नमस्कृत ।
  429. द्रष्टा: – शुभाशुभ कर्मों को देखनेवाले ।
  430. विद्यादाता: – विद्या प्रदान करनेवाले ।
  431. जगद्गुरु: – जगत् को सन्मार्ग में लगानेवाले गुरु ।
  432. देवाचार्य: – देवताओं के आचार्य ।
  433. सत्यवादी: – सत्य बोलनेवाले ।
  434. ब्रह्मवादी: – ब्रह्म (परमात्म ) – विषयक विवेचन करनेवाले ।
  435. कलाधर: – कलाओं के ज्ञाता ।
  436. सप्तपातालगामी: – सातों पातालोंमें विचरण करनेवाले ।
  437. मलयाचल संश्रय: – मलयगिरिपर निवास करनेवाले ।
  438. उत्तराशास्थित: – उत्तर दिशा में स्थित ।
  439. श्रीद: – शोभा ( ऐश्वर्य ) प्रदान करनेवाले ।
  440. दिव्यौषधिवश: – दिव्य औषधियों को वशीभूत करनेवाले ।
  441. खग: – नभोमण्डल में विचरण करनेवाले ।
  442. शाखामृग: – शाखाओं पर कूदनेवाले ।
  443. कपीन्द्र: – वानरों के अधिपति ।
  444. पुराण श्रुतिचञ्चुर: – श्रुति और पुराण की विशेष जानकारी रखनेवाले ।
  445. चतुर ब्राह्मण: – निपुण ब्राह्मणस्वरूप ।
  446. योगी: – योगसिद्ध ।
  447. योगगम्य: – योगाभ्यास के द्वारा प्राप्त होनेवाले ।
  448. परावर: – विश्व के आदि और अंतस्वरूप ।
  449. अनादिनिधन: – आदि-अंत से रहित ।
  450. व्यास: – वेदों का विस्तार करनेवाले ।
  451. वैकुण्ठ: – माया के प्रभाव से रहित
  452. पृथिवीपति: – भूलोक के रक्षक ।
  453. अपराजित: – शत्रुओं के द्वारा अजेय ।
  454. जिताराति: – शत्रुओं को जीतनेवाले ।
  455. सदानन्द: – सदा आनंदित रहनेवाले ।
  456. दयायुत: – दयालु ।
  457. गोपाल: – पृथ्वीका पालन करनेवाले ।
  458. गोपति: – इन्द्रियों के स्वामी ।
  459. गोप्ता: – भक्तों के रक्षक ।
  460. कलिकाल पराशर: – कलिकाल के पराशर अर्थात् कथा वाचकों के उत्पादक ।
  461. मनोवेगी: – मन के समान वेगवाले ।
  462. सदायोगी: – सदा योगयुक्त रहनेवाले ।
  463. संसार भय नाशन: – भवभय का नाश करनेवाले ।
  464. तत्त्वदाता: – तत्वज्ञान के दाता ।
  465. तत्त्वज्ञ: – तत्वज्ञानी ।
  466. तत्त्वम्: – ब्रह्मस्वरूप ।
  467. तत्त्व प्रकाश: – तत्व का प्रकाश करनेवाले ।
  468. शुद्ध: – सबको पवित्र करनेवाले ।
  469. बुद्ध: – ज्ञानवान् ।
  470. नित्यमुक्त: – सदा मुक्तस्वरूप ।
  471. भक्तराज: – भगवद्भक्तों में देदीप्यमान ।
  472. जयद्रथ: – आक्रमण में जय प्राप्त करनेवाले ।
  473. प्रलय: – शत्रुओं के लिये प्रलयंकर ।
  474. अमितमाय: – अनंत माया जाननेवाले ।
  475. मायातीत: – सर्वथा मायाजाल से रहित ।
  476. विमत्सर: – ईर्ष्या से रहित्।
  477. माया भर्जितरक्ष: – अपनी माया से राक्षसों को भून डालनेवाले ।
  478. मायानिर्मित विष्टप: – माया से भुवनों की सृष्टि करनेवाले ।
  479. मायाश्रय: – माया का आश्रय लेनेवाले ।
  480. निर्लेप: – निरासक्त रहनेवाले ।
  481. मायानिर्वर्तक: – माया शक्ति द्वारा कार्य सम्पन्न करनेवाले ।
  482. सुखम्: – सुखस्वरूप।
  483. सुखी: – सदा सुख से रहनेवाले ।
  484. सुखप्रद: – सुख प्रदान करनेवाले ।
  485. नाग: – नागस्वरूप ।
  486. महेशकृतसंस्तव: – शंकरजी के द्वारा स्तुत ।
  487. महेश्वर: – महान् ऐश्वर्यशाली ।
  488. सत्यसन्ध: – सत्यवादी ।
  489. शरभ: – शरभ नामक पशु के समान महान् बलशाली ।
  490. कलिपावन: – कलियुग को पवित्र करनेवाले ।
  491. सहस्रकन्धर बलविध्वंसन विचक्षण: – हजारों सिरवाले रावण के बल को विध्वंस करने में चतुर ।
  492. सहस्रबाहु: – हजारों भुजाबाले ।
  493. सहज: – सहज स्थितिस्वरूप।
  494. द्विबाहु: – दो बाहुवाले ।
  495. द्विभुज: – दो भुजाओंवाले ।
  496. अमर: – अविनाशी।
  497. चतुर्भुज: – चार भुजावाले ।
  498. दशभुज: – दस भुजावाले ।
  499. हयग्रीव: – अश्व के समान गर्दंवाले ।
  500. खगानन: – गरुड़के समान मुखवाले ।
  501. कपिवक्त्र: – कपि-सदृश मुखवाले ।
  502. कपिपति: – वानरों की रक्षा करनेवाले ।
  503. नरसिंह: – नरसिन्ह के समान विकराल रूप धारण करनेवाले ।
  504. महाद्युति: – अत्यंत तेजस्वी ।
  505. भीषण: – युद्ध में भयंकररूप ।
  506. भावग: – भगवद्भाव को प्राप्त।
  507. वन्द्य: – वंदना करने योग्य ।
  508. वराह: – वराह – मुखवाले ।
  509. वायुरूपधृक्: – वायु का रूप धारण करनेवाले ।
  510. लक्ष्मण प्राणदाता: – लक्ष्मण को ( संजीवनी लाकर ) जिलानेवाले ।
  511. पराजित दशानन: – दशानन (रावण ) – को पराजित करनेवाले ।
  512. पारिजात निवासी: – पारिजात वृक्ष के नीचे निवास करनेवाले ।
  513. वटु: – ब्रह्मचारीस्वरूप
  514. वचन कोविद: – बोलने में अति चतुर ।
  515. सुरसास्यविनिर्मुक्त: – सुरसा के मुख से सुखपूर्वक निकल आनेवाले ।
  516. सिंहिका प्राणहारक: – सिंहि का राक्षसी का प्राण हरनेवाले ।
  517. लङ्कालङ्कारविध्वंसी: – लंका की शोभा को नष्ट करनेवाले ।
  518. वृषदंशकरूपधृक्: – वृषदंशक अर्थात् विडाल का रूप धारण करनेवाले ।
  519. रात्रिसंचार कुशल: – रात में घूमने में चतुर ।
  520. रात्रिंचरगृहाग्निद: – राक्षसों के घरों में आग लगानेवाले ।
  521. किङ्करान्तकर: – रावण के सेवकों को मार डालनेवाले ।
  522. जम्बुमालिहक्ता: – जम्बुमाली राक्षस को मारनेवाले ।
  523. उग्ररूपधृक्: – उग्ररूप धारण करनेवाले ।
  524. आकाशचारी: – आकाश में विचरण करनेवाले ।
  525. हरिग: – प्रभु को प्राप्त करनेवाले ।
  526. मेघनादरणोत्सुक: – मेघनाद के साथ युद्ध करने के लिये उत्कण्ठित ।
  527. मेघगम्भीरनिनदो: – बादल के समान गम्भीर शब्द करनेवाले ।
  528. महारावणकुलान्तक: ‌- महारावण के कुल को नष्ट करनेवाले ।
  529. कालनेमिप्राणहारी: – कालनेमि राक्षस का प्राण हरनेवाले ।
  530. मकरीशापमोक्षद: – मकरी को शाप से मुक्त करनवाले ।
  531. रस: – रसस्वरूप ।
  532. रसज्ञ: – रस को जाननेवाले।
  533. सम्मान: – प्रभुका सम्यक् सम्मान करनेवाले ।
  534. रूपम् – रूप स्वरूप ।
  535. चक्षु: – चक्षुस्वरूप ।
  536. श्रुति: – श्रवणस्वरूप ।
  537. वच: – वाणीस्वरूप ।
  538. घ्राण: – नासिकास्वरूप ।
  539. गन्ध: – गंधरूप ।
  540. स्पर्शनम्: – स्पर्शरूप ।
  541. स्पर्श: – सम्पर्क- ज्ञानस्वरूप ।
  542. अहङ्कारमानग: – अहंकार के स्वरूप को प्राप्त होनेवाले ।
  543. नेतिनेतीतिगम्य: – नेति-नेति शब्दों द्वारा गम्य ।
  544. वैकुण्ठ भजन प्रिय: – भगवान् के भजन में प्रीति रखनेवाले ।
  545. गिरीश: – पर्वतों के ईश ।
  546. गिरिजाकान्त: – माता पार्वती के प्रिय शंकरस्वरूप ।
  547. दुर्वासा: – दुर्वासा मुनिस्वरूप ।
  548. कवि: – कविस्वरूप ।
  549. अङ्गिरा: – अङ्गिरा मुनिरूप ।
  550. भृगु: – भृगु मुनिस्वरूप ।
  551. वसिष्ठ: – वशिष्ठ्मुनिस्वरूप ।
  552. च्यवन: -च्यवन ऋषिस्वरूप ।
  553. नारद: – नारदमुनिस्वरूप ।
  554. तुम्बर: – तुम्बरु गंधर्वस्वरूप ।
  555. अमल: – दोषरहित ।
  556. विश्वक्षेत्र: – विश्वक्षेत्रस्वरूप।
  557. विश्वबीज: – विश्वबीज अर्थात् कारणस्वरूप ।
  558. विश्वनेत्र: – सर्वद्रष्टा ।
  559. विश्वप: – विश्वके पालक ।
  560. याजक: – यज्ञकर्मा ।
  561. यजमान: – प्रधान होतारूप ।
  562. पावक: – अग्निरूप ।
  563. पितर: – जगत् के माता पिता ।
  564. श्रद्धा: – श्रद्धास्वरूप ।
  565. बुद्धि: – बुद्धिस्वरूप ।
  566. क्षमा: – क्षमास्वरूप ।
  567. तन्द्रा: – तंद्रारूप ।
  568. मन्त्र: – मंत्रस्वरूप ।
  569. मन्त्रयिता : – शुभ मंत्र देनेवाले ।
  570. सुर: – देवस्वरूप ।
  571. राजेन्द्र: – राजाओं में श्रेष्ठ ।
  572. भूपती: – पृथ्वी के पालक ।
  573. रुण्डमाली: – रुण्डों के मालावाले ।
  574. संसार सारथि: – भक्तों को भवसिन्धु पार करने में सहायक ।
  575. नित्य सम्पूर्ण काम: – सदा सभी कामनाओं से तृप्त ।
  576. भक्त कामधुक्: – भक्तों की कामनाओं के दोग्धा ।
  577. उत्तम: – श्रेष्ठ ।
  578. गणप: – वानरगणों के पालक ।
  579. केशव: – घुँघराले केशवाले ।
  580. भ्राता: – भ्रातृस्वरूप ।
  581. पिता: – पितारूप ।
  582. माता: – वात्सल्यमयी मातारूप ।
  583. मारुति: – पवनदेवता के पुत्र ।
  584. सहस्रमूर्द्धा: – हजारों सिरवाले ।
  585. अनेकास्य: – अनेक मुखवाले ।
  586. सहस्राक्ष: – सहस्त्रों नेत्रवाले ।
  587. सहस्रपात्: – सहस्त्रों पैरवाले ।
  588. कामजित्: – कामदेव को जीतनेवाले ।
  589. कामदहन: – काम को जलानेवाले ।
  590. काम: – सौन्दर्यशाली ।
  591. कामफलप्रद: – कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।
  592. मुद्रापहारी: – श्रीराम मुद्रिका को ले जानेवाले ।
  593. रक्षोघ्न: – राक्षसों का नाशकरनेवाले ।
  594. क्षिति भारहा: – पृथ्वी का भार उतारनेवाले ।
  595. बल: – शत्रु- सन्हारक ।
  596. नखदंष्ट्रायुध: – नख और दंष्ट्रारूप शस्त्र धारण करनेवाले ।
  597. विष्णु: – व्यापकस्वरूप ।
  598. भक्ताभय वरप्रद: – भक्त को अभय वर प्रदान करनेवाले ।
  599. दर्पहा: – दर्प का नाश करनेवाले ।
  600. दर्पद: – उत्साह प्रदान करनेवाले ।
  601. दंष्ट्रा: शत मूर्ति: – सौ दंष्ट्राओं से युक्त मुर्तिवाले ।
  602. अमूर्तिमान्:- मूर्तिरहित अर्थात् निराकारस्वरूप ।
  603. महानिधि: – सद्गुणों के महान् भण्डार ।
  604. महाभाग: – बड़े भाग्यशाली ।
  605. महाभर्ग: – महातेजस्वी ।
  606. महार्द्धिद: – महान् ऋषि प्रदान करनेवाले ।
  607. महाकार: – बड़े आकारवाले ।
  608. महायोगी: – महान् योगी ।
  609. महातेजा: – बड़े तेजस्वी ।
  610. महाद्युति: -अत्यंत शोभावाले ।
  611. महासन: – अत्यंत स्थिर आसनवाले ।
  612. महानाद: – बड़ी गर्जना करनेवाले ।
  613. महामन्त्र: – उच्चकोटि के मंत्रवाले ।
  614. महामति: – महान् बुद्धिवाले ।
  615. महागम: – महान् गतिवाले ।
  616. महोदार: – बड़े उदार ।
  617. महादेवात्मक: – महादेवस्वरूप ।
  618. विभु: – सर्वव्यापक ।
  619. रौद्रकर्मा: – भयामक कर्म करनेवाले ।
  620. क्रूरकर्मा: – कठोर कर्म करनेवाले ।
  621. रत्नाभ: – रत्न के समान नाभिवाले ।
  622. कृतागम: – शास्त्रकी रचना करनेवाले ।
  623. अम्भोधि लङ्घन: – समुद्र लाँघनेवाले ।
  624. सिंह: – सिंहस्वरूप ।
  625. सत्यधर्म प्रमोदन: – सत्यधर्म का पालन करनेमें प्रसन्न ।
  626. जितामित्रो: – शत्रुओं को जीतनेवाले ।
  627. जय: – जयस्वरूप ।
  628. सोम: – सोमस्वरूप ।
  629. विजयी: – पराक्रमी ।
  630. वायुनन्दन: – पवनदेवता को आनंदित करनेवाले ।
  631. जीवदाता: – प्राणदान करनेवाले ।
  632. सहस्रांशु: – सूर्यस्वरूप ।
  633. मुकुन्द: – मुक्तिप्रदान करनेवाले ।
  634. भूरिदक्षिण: – विपुल दक्षिणा प्रदान करनेवाले ।
  635. सिद्धार्थ: – सदासिद्ध प्रयोगवाले ।
  636. सिद्धिद: – सिद्धि देनेवाले ।
  637. सिद्ध सङ्कल्प: – सिद्ध संकल्पवाले ।
  638. सिद्धि हेतुक: – सिद्धियों के कारण ।
  639. सप्तपातालचरण: – सप्तपाताल में संचरण करनेवाले ।
  640. सप्तर्षिगणवन्दित: – सप्तऋषियों द्वारा वंदित ।
  641. सप्ताब्धिलङ्घन: – सातों समुद्रों को लाँघनेवाले ।
  642. वीर: – संदेश पहुँचानेवालों में वीर ।
  643. सप्तद्वीपोरुमण्डल: – सप्तद्वीप के विशाल मण्डल में विचरण करनेवाले ।
  644. सप्ताङ्गराज्यसुखद: – सप्ताङ्ग़युक्त राज्य के लिये सुखद ।
  645. सप्तमातृनिषेवित: – सात माताओं द्वारा सेवित ।
  646. सप्तस्वर्लोकमुकुट: – सात स्वर्गलोकों के मुकुटमणि ।
  647. सप्तहोता: – सामवेद के सात मंत्रों से हवन करनेवाले ।
  648. स्वाराश्रय: – स्वरों का आश्रय लेनेवाले अर्थात् संगीत- शास्त्रों में प्रवीण ।
  649. सप्तच्छन्दोनिधि: – सात वैदिक छंदों के आश्रय ।
  650. सप्तच्छन्द: – सात छन्दस्वरूप ।
  651. सप्तजनाश्रय: – सप्तजनों के आश्रयस्वरूप ।
  652. सप्तसामोपगीत: – जिनका सामवेद की सात स्वरोंद्वारा गान किया जाता है ।
  653. सप्तपाताल संश्रय: – सप्तपाताल के आश्रय ।
  654. मेधाद: – मेधा को प्रदान करनेवाले ।
  655. कीर्तिद: – यश देनेवाले ।
  656. शोकहारी: – शोक हरण करनेवाले ।
  657. दौर्भाग्यनाशन: – दुर्भाग्य का नाश करनेवाले ।
  658. सर्वरक्षाकर: -चारों ओर से रक्षा करनेवाले ।
  659. गर्भदोषहा: – गर्भ-दोष को दूर करनेवाले ।
  660. पुत्रपौत्रद: – पुत्र और पौत्र प्रदान करनेवाले ।
  661. प्रतिवादिमुखस्तम्भ: – प्रतिवादी के मुख को बंद करनेवाले अर्थात् श्रेष्ठ वक्ता ।
  662. रुष्टचित्तप्रसादत: – रूष्टचित्तवालों को प्रसन्न करनेवाले ।
  663. पराभिचारशमन: – शत्रु के मारण- मोहन आदि अभिचारों को शमन करनेवाले ।
  664. दुःखहा: – दु:खों का नाश करनेवाले ।
  665. बन्धमोक्षद:- बंधनसे मुक्त करनेवाले ।
  666. नवद्वारापुराधार : – नवद्वारपुर (शरीर ) के आधार ।
  667. नवद्वारनिकेतन: – नवद्वारवाले शरीररूपी घर में रहनेवाले आत्म-स्वरूप ।
  668. नरनारायण स्तुत्य: – नर और नारायण के द्वारा स्तुत्य ।
  669. नवनाथ महेश्वर: – नवनाथों के महेश्वर ।
  670. मेखली: – मेखला धारण करनेवाले ।
  671. कवची: – कवच धारण करनेवाले ।
  672. खंगी: – खड्ग धारण करनेवाले ।
  673. भ्राजिष्णु: – देदीप्यमान ।
  674. जिष्णुसारथि: – अर्जुन के सारथि अर्थात् ध्वजा में निवास करनेवाले ।
  675. बहुयोजनविस्तीर्णपुच्छ: – अनेक योजन लम्बी पूँछवाले ।
  676. पुच्छहतासुर: – पूँछसे राक्षसों को मारनेवाले ।
  677. दुष्टग्रहनिहन्ता: – दुष्टग्रहों के नाशक ।
  678. पिशाचग्रहघातक: – पिशाचग्रह के हन्ता ।
  679. बालग्रह विनाशी: – बालग्रहों का विनाश करनेवाले ।
  680. धर्मनेता: – धर्म के नेता ।
  681. कृपाकार: – कृपा करनेवाले ।
  682. उग्रकृत्य: – उग्र कृत्यकर्ता ।
  683. उग्रवेग: – भयंकर वेगवान्।
  684. उग्रनेत्र: – उग्र नेत्रवाले ।
  685. शतक्रतु: – सौ यज्ञ करनेवाले इंद्रस्वरूप ।
  686. शतमन्युनुत: – इन्द्रद्वारा स्तुत ।
  687. स्तुत्य: – स्तुति करने योग्य ।
  688. स्तुति: – स्तुतिस्वरूप ।
  689. स्तोता: – स्तुति करनेवाले ।
  690. महाबल: – अत्यंत बलशाली।
  691. समग्रगुणशाली: – सारे- गुणों से युक्त ।
  692. व्यग्र: – सदा उद्यत ।
  693. रक्षोविनाशक: – असुरों का विनाश करनेवाले ।
  694. रक्षोऽग्निदाह: – राक्षसों को अग्नि में जलादेनेवाले ।
  695. ब्रह्मेश: – ब्रह्मा के ऊपर शासन करनेवाले ।
  696. श्रीधर: – ऐश्वर्य धारण करनेवाले ।
  697. भक्तवत्सल: – भक्तों पर कृपा करनेवाले ।
  698. मेघनाद: – मेघ के समान गर्जनेवाले ।
  699. मेघरूप: – मेघ के समान रूपवाले ।
  700. मेघवृष्टिनिवारक: – मेघ की वृष्टि को रोकनेवाले ।
  701. मेघजीवनहेतु: – मेघों के जीवन के हेतु समुद्रस्वरूप ।
  702. मेघश्याम: – मेघ के समान श्याम वर्णवाले ।
  703. परात्मक: – परमात्मस्वरूप ।
  704. समीरतनय: – वायु- देवता के पुत्र ।
  705. योद्धा: – शत्रुओं के साथ लड़नेवाले ।
  706. नृत्यविद्याविशारद: – नृत्यकला में विशारद ।
  707. अमोघ: – कभी व्यर्थ न होनेवाले ।
  708. अमोघदृष्टि: – जिनकी कृपादृष्टि कभी व्यर्थ नहीं जाती ।
  709. इष्टद: – मनोवाञ्छित वस्तु देनेवाले ।
  710. अरिष्टनाशन: – विघ्ननाशक ।
  711. अर्थ: – अर्थस्वरूप ।
  712. अनर्थापहारी: – अनर्थ को दूर करनेवाले ।
  713. समर्थ: – सर्वथा सामर्थ्यवान् ।
  714. रामसेवक: – श्रीराम के सेवक ।
  715. अर्थिवन्द्य: – अर्थियों के द्वारा वन्दनीय ।
  716. असुराराति: – असुरों के शत्रु।
  717. पुण्डरीकाक्ष: – श्वेतकमल के समान नेत्रवाले अर्थात् विष्णुस्वरूप ।
  718. आत्मभू: – स्वेच्छासे प्रकट होनेवाले ।
  719. सङ्कर्षण: – शत्रुओं को कर्षण करनेवाले बलदेवस्वरूप ।
  720. विशुद्धात्म: – परम पवित्रस्वरूप ।
  721. विद्यारात्रि: – विद्या की राशि – पूर्ण विद्वान ।
  722. सुरेश्वर: – देवताओं के स्वामी ।
  723. अचलोद्धारको: – अचलों (पर्वतों ) – का उद्धार करनेवाले ।
  724. नित्य: – नित्य विद्यमान ।
  725. सेतुकृत्: – सेतु बनानेवाले ।
  726. रामसारथि: – श्रीराम के वाहन ।
  727. आनन्द: – आनंद प्रदान करनेवाले ।
  728. परमानन्द: – परमानन्दास्वरूप ।
  729. मत्स्य: – मत्स्यस्वरूप ।
  730. कूर्म: – कूर्मस्वरूप ।
  731. निराश्रय: – आश्रयरहित ।
  732. वाराह: – वाराहस्वरूप ।
  733. नारसिंह: – नृसिन्हस्वरूप ।
  734. वामन: – वामनस्वरूप ।
  735. जमदग्निज: – परशुरामस्वरूप ।
  736. राम: – श्रीरामस्वरूप ।
  737. कृष्ण: – श्रीकृष्णस्वरूप ।
  738. शिव: – शिवास्वरूप ।
  739. बुद्ध: – बुद्धस्वरूप ।
  740. कल्कि: – कल्किस्वरूप
  741. रामाश्रय: – श्री राम के आश्रित ।
  742. हरि: – जगत् का दु:ख हरनेवाले ।
  743. नन्दी: – नन्दीस्वरूप ।
  744. भृंगी: – भृङ्गीस्वरूप ।
  745. चण्डी: – देवीस्वरूप ।
  746. गणेश: – गणपतिरूप ।
  747. गणसेवित: – वानरगणोंद्वारा सेवित ।
  748. कर्माध्यक्ष: – कर्मों के स्वामी ।
  749. सुराध्यक्ष: – देवताओं के अध्यक्ष ।
  750. विश्राम: – सब प्राणियों के विश्रामस्थल ।
  751. जगतीपति: – पृथ्वी का पालन करनेवाले ।
  752. जगन्नाथ: – जगत् के स्वामी ।
  753. कपीश: – वानरों के स्वामी ।
  754. सर्वावास: – सबके निवासस्थान ।
  755. सदाश्रय: – परमार्थपथ पर चलनेवालोंके आश्रय ।
  756. सुग्रीवादिस्तुत: – सुग्रीव आदि वानर जिनकी स्तुति करते हैं ।
  757. दान्त: – इन्द्रियों को वश में रखनेवाले ।
  758. सर्वकर्मा: – कृतकृत्य ।
  759. प्लवङ्गम: – वानररूप ।
  760. नखदारितरक्षा: – नखों के दवारा राक्षसों को विदीर्ण करनेवाले ।
  761. नखयुद्धविशारद: – नखयुद्ध में कुशल ।
  762. कुशल: – परम निपुण ।
  763. सुधन: – भक्तिरूपी ।
  764. शेष: – शेषनागस्वरूप।
  765. वासुकि: – वासुकिसर्पस्वरूप ।
  766. तक्षक: – तक्षक स्वरूप ।
  767. स्वर्णवर्ण: – सोने के समान दीप्तवर्णवाले ।
  768. बलाढ्य: – अति शक्तिशाली
  769. पुरुजेता: – बहुल विजयी ।
  770. अघनाशन: – पाप का नाश करनेवाले ।
  771. कैवल्यरूप: – मुक्तिस्वरूप ।
  772. कैवल्य: – अद्वयस्वरूप ।
  773. गरुड़: – गरुड़रूप ।
  774. पन्नगोरग: – लेटे-लेटे चलनेवाले तथा उरसे चलनेवाले अर्थात् हनुमान् जी सब प्रकार से चलनेवाले हैं ।
  775. किल्किल् रावहताराति: – किल – किल शब्द से शत्रुओं का नाश करनेवाले ।
  776. गर्वपर्वतभेदन: – गर्वरूप पर्वत को काट गिरानेवाले ।
  777. वज्राङ्ग: – वज्र शरीर ।
  778. वज्रदंष्ट्र: – वज्र के समान दाँतवाले
  779. भक्तवज्रनिवारक: – भक्तों के ऊपर गिरते हुए वज्र को रोकनेवाले ।
  780. नखायुध: – नख जिनके शस्त्र हैं ।
  781. मणिग्रीव: – कण्ठ में मणि धारण करनेवाले ।
  782. ज्वालामाली: – लंकादाह के समय अग्नि- ज्वालाकी माला धारण करनेवाले ।
  783. भास्कर: – सूर्य के समान प्रकाशस्वरूप ।
  784. प्रौढप्रताप: – प्रवृद्ध प्रतापवाले
  785. तपन: – सूर्यरूप।
  786. भक्तताप निवारक: – भक्तों का संताप दूर करनेवाले ।
  787. शरणम्: – शरणागत – रक्षक ।
  788. जीवनम्: – सबके जीवनस्वरूप ।
  789. भोक्ता: – सबको पालन करनेवाले ।
  790. नानाचेष्ट: – अनेक चेष्टावाले ।
  791. अचञ्चल: – स्वरूप में अटल रहनेवाले ।
  792. स्वस्तिमान्: – कल्याणस्वरूप ।
  793. स्वस्तिद: – कल्याण वितरण करनेवाले ।
  794. दुःखनाशन: – दु:खों के नाशक ।
  795. पवनात्मज: – पवन के पुत्र ।
  796. पावन: – पवित्र करनेवाले ।
  797. पवन: – वायुरूप ।
  798. कान्ता: – कांतिमान् ।
  799. भक्तागःसहन: – भक्तों के अपराधों को सहन करनेवाले ।
  800. बली: – बलवान्।
  801. मेघनादरिपु: – मेघनाद के शत्रु ।
  802. मेघनादसंहतराक्षस: – जिनकी मेघ – तुल्य गर्जना से राक्षस नष्ट हो जाते हैं ।
  803. क्षर: – प्रकृतिकार्यस्वरूप ।
  804. अक्षर: – अविनाशी आत्मस्वरूप ।
  805. विनीतात्मा: – विनम्र –स्वभाव ।
  806. वानरेश: – वानरों के ईश ।
  807. सताङ्गति: – संतों की गति ।
  808. श्रीकण्ठ: – शोभायमान कण्ठवाले ।
  809. शितिकण्ठ: – नीलकण्ठ भगवान् शंकरस्वरूप ।
  810. सहाय: – सहायता करनेवाले ।
  811. सहनायक: – अपने स्वामी श्रीराम के साथ रहनेवाले ।
  812. अस्थूल: – सूक्ष्मस्वरूप ।
  813. अनणु: – महान् ।
  814. भर्ग: – आभायुक्त ।
  815. दिव्य: – दिव्यरूपधारी ।
  816. संसृतिनाशन: – भवबंधन को मिटानेवाले ।
  817. अध्यात्म विद्यासार: – अध्यात्मविद्या के सार-तत्व ।
  818. अध्यात्म कुशल: – अध्यात्मविद्या में कुशल।
  819. सुधी: – सुंदर बुद्धिवाले ।
  820. अकल्मष: – निष्पाप ।
  821. सत्यहेतु: – सत्यस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति करानेवले ।
  822. सत्यद: – सत्य प्रदान करनेवाले ।
  823. सत्यगोचर: – सत्य से दृष्टिगोचर होनेवाले ।
  824. सत्यगर्भ: – सत्य आशयवाले 825
  825. सत्य: – सत्यस्वरूप ।
  826. सत्यपराक्रम: – जिनका पराक्रम निष्फल नहीं होता ।
  827. अञ्जनाप्राणलिङ्ग: – माता अंजना के प्राणप्यारे पुत्र ।
  828. वायुवंशोद्भव: – वायुदेवता के वंशमें उत्पन्न ।
  829. शुभ: – कल्याणप्रद ।
  830. भद्ररूप: – मङ्गलमय स्वरूपवाले ।
  831. रुद्ररूप: – शंकरस्वरूप ।
  832. सुरूप: – सुन्दर स्वरूपवाले ।
  833. चित्ररूपधृक्: -चित्र- विचित्र रूप धारण करनेवाले ।
  834. मैनाकवन्दित: – मैंनाकपर्वतद्वारा वंदित ।
  835. सूक्ष्मदर्शन: – सूक्ष्मदृष्टि वाले ।
  836. विजय: – अर्जुनस्वरूप ।
  837. जय: – विष्णु के दवारपालस्वरूप ।
  838. क्रान्तदिङ्मण्डल: – दिशाओं के पार जानेवाले ।
  839. रुद्र: – आर्द्रानक्षत्ररूप ।
  840. प्रकटीकृतविक्रम: – अपने पराक्रम को प्रकट करनेवाले ।
  841. कम्बुकण्ठ: – शंख के समान सुंदर गर्दनवाले ।
  842. प्रसन्नात्मा: – सदा प्रसन्न चित्त रहनेवाले ।
  843. ह्रस्वनास: – छोटी नासिकावाले ।
  844. वृकोदर: – भेड़ियों के समान बड़े उदरवाले ।
  845. लम्बौष्ठ: – बड़े-बड़े ओठवाले ।
  846. कुण्डली: – कानों मे कुण्डल धारण करनेवाले ।
  847. चित्रमाली: – चित्र- विचित्र पुष्पों की माला पहननेवाले ।
  848. योगविदां वर: – योगवेत्तओं में श्रेष्ठ ।
  849. विपश्चितकवि – तत्वज्ञ कवि ।
  850. आनन्दविग्रह: – मूर्तिमान् आनंद ।
  851. अनल्पशासन: -सबके ऊपर शासन करनेवाले ।
  852. फाल्गुनी सूनु: – पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे उत्पन्न होनेवाले फाल्गुनीपुत्र ।
  853. अव्यग्र: – कभी व्याकुल न होनेवाले ।
  854. योगात्मा: – योगस्वरूप ।
  855. योगतत्पर: – योग में तत्पर रहनेवाले ।
  856. योगवित्: – योग के ज्ञाता ।
  857. योगकर्ता: – योग को बनानेवाले ।
  858. योग योनि: – योग की उत्पत्तिके कारण ।
  859. दिगम्बर: – दिशारूपी वस्त्रधारी ।
  860. अकारादिहकारान्तवर्णनिर्मित विग्रह: – सर्ववर्णस्वरूप ।
  861. उलूखलमुख: – ओखली के समान मुखार-विंदवाले ।
  862. सिद्धसंस्तुत: – सिद्धपुरुषों के दवारा जिनकी सम्यक् रीति से स्तुति होती है ।
  863. प्रमयेश्वर: – भूतगणों के स्वामी ।
  864. श्लिष्टजङ्घ: – सटी हुई जंघावाले ।
  865. श्लिष्टजानु: – मिले हुए घुटनोंवाले ।
  866. श्लिष्टपाणि: – मिले हुए हाथोंवाले ।
  867. शिखाधर: – चोटी धारण करनेवाले ।
  868. सुशर्मा: – सुंदर सुख देनेवाले ।
  869. अमितशर्मा: – असीम सुख देनेवाले ।
  870. नारायण परायण: – भगवान् नारायण में लीन रहनेवाले ।
  871. जिष्णु: -जीतनेवाले ।
  872. भविष्णु: – भविष्य में होनेवाले ।
  873. रोचिष्णु: – कांतिमान्।
  874. ग्रसिष्णु: – सर्वसन्हार करनेवाले शिवस्वरूप ।
  875. स्थाणु: – स्थिर रहनेवाले ।
  876. हरिरुद्रानुसेक: – भगवान् विष्णु और शंकर का अभिषेक करनेवाले ।
  877. कम्पन: – शत्रुओं को कम्पित करनेवाले ।
  878. भूमिकम्पन: – पृथ्वी को कम्पित करनेवाले ।
  879. गुण प्रवाह: – गुणों के प्रवाह अर्थात् सर्वगुणसमपन्न ।
  880. सूत्रात्मा: – यज्ञोपवीतधारी ।
  881. वीतराग स्तुतिप्रिय: – वीतराग पुरुष के द्वारा की गयी स्तुति जिन्हें प्रिय लगती है ।
  882. नागकन्याभयध्वंसी: – नागकन्याओं के भय का ध्वंस करनेवाले ।
  883. रुक्मवर्ण: – सुवर्ण के समान वर्णवाले ।
  884. कपालभृत: – कपाल धारण करनेवाले ।
  885. अनाकुल: – व्यग्रतारहित ।
  886. भवोपाय: – भवसागर पार करने के लिये उपायरूप ।
  887. अनपाय: – भगवान् श्रीराम से कभी वियुक्त न होनेवाले ।
  888. वेदपारग: – वेदों में पारंगत ।
  889. अक्षर: – अविनाशी ।
  890. पुरुष: – बुद्धिरूपी पुरी में सोनेवाले ।
  891. लोकनाथ: – सम्पूर्ण लोकों के स्वामी ।
  892. ऋक्षःप्रभु: -नक्षत्रों के स्वामी अर्थात् चंद्रस्वरूप ।
  893. दृढ: – हृष्ट – पुष्ट शरीर ।
  894. अष्टाङ्गयोगफलभुक्: – अष्टाङ्गयोग के फलका उपभोग करनेवाले ।
  895. सत्यसन्घ: – दृढ़ मैत्रीवाले ।
  896. पुरुष्टुत: – – देवताओं के द्वारा संस्तुत ।
  897. श्मशानस्थाननिलय: – श्मशान में निवास करनेवाले ।
  898. प्रेतविद्रावणक्षम: – प्रेत को तुरंत भगाने में समर्थ ।
  899. पञ्चाक्षरपर: – ‘ नम : शिवाय ’ इस प्रधान पञ्चाक्षर मंत्र को जपनेवाले ।
  900. पञ्चमातृक: – सीता, उर्मिला , माण्डवी ,श्रुतिकीर्ति और अंजना – इन पाँच माताओंवाले ।
  901. रञ्जनध़्वज: – लाल रंग की ध्वजावाले ।
  902. योगिनीवृन्द वन्द्य श्री: – योगिनीवृन्द के द्वारा वन्दनीय शोभास्वरूप।
  903. शत्रुघ्न: – शत्रुओं को हनन करनेवाले ।।
  904. अनन्त विक्रम: – अपार पराक्रमशाली ।
  905. ब्रह्मचारी: – ब्रह्म में विचरण करनेवाले ।
  906. इन्द्रियरिपु: – इंद्रियों के शत्रु अर्थात् जितेंद्रिय ।
  907. धृतदण्ड: – दण्दधारी ( गदाधारी )।
  908. दशात्मक: – दशावतारस्वरूप ।
  909. अप्रपञ्च: – संसार के प्रपञ्चसे रहित ।
  910. सदाचार: – सदाचारयुक्त ।
  911. शूरसेनाविदारक: – शूर पुरुषों की सेना को विदीर्ण करनेवाले ।
  912. वृद्ध: – सब प्रकार से बड़े ।
  913. प्रमोद: – प्रमोद-वृतिस्वरूप ।
  914. आनन्द: – आनंद स्वरूप ।
  915. सप्तद्वीपपतिन्धर: – सप्तद्वीपपतियों को धारण करनेवाले ।
  916. नवद्वारपुराधार: – नवद्वारवाले पुर अर्थात् शरीरों के आधार ।
  917. प्रत्यग्र: – सबके आगे चलनेवाले ।
  918. सामगायक: – सामवेद का गान करनेवाले ।
  919. षट्चक्रचाम: – सहस्त्रार आदि षट्चक्रों में परमात्मरूप से निवास करनेवाले ।
  920. स्वर्लोकाभयकृत: -स्वर्गलोक को अभय करनेवाले ।
  921. मानद: – मान देनेवाले ।
  922. मद: – सम्पूर्ण अहंकृतिरूप ।
  923. सर्ववश्यकर: – सबको वश में करनेवाले ।।
  924. शक्ति: – शक्तिस्वरूप ।
  925. अनन्त: – जिनके गुणों का अंत नहीं है ।
  926. अनन्तमङ्गल: – जो अनंत मंगलों से पूर्ण हैं ।
  927. अष्टमूर्ति: – पंच भूत, सुर्य , चंद्र , और आत्मा -ये आठ जिनकी मूर्ति अर्थात् स्वरूप हैं ।
  928. नयोपेत: – नीतिमान्।
  929. विरूप: – विविध रूपवाले ।
  930. सुरसुन्दर: – देवताओं से भी अधिक सुंदर ।
  931. धूमकेतु: – अग्निस्वरूप ।
  932. महाकेतु: – विशाल बुद्धिवाले ।
  933. सत्यकेतु: – जिनका सत्य आदर्श है ।
  934. महारथ: – महारथी ।
  935. नन्दिप्रिय: – नन्दि( शिववाहन ) जिनके प्रिय हैं ।
  936. स्वतन्त्र: – जो किसी के अधीन नहीं हैं ।
  937. मेखली: – कटिसूत्र धारण करनेवाले ।
  938. डमरुप्रिय: – जिनको डमरू प्रिय है उस शिव के स्वरूप ।
  939. लौहाङ्ग: – लोहे के समान दृढ़ शरीरवाले ।
  940. सर्ववित्: – सब कुछ जाननेवाले।
  941. धन्वी: – धनुर्धर ।
  942. खण्डल: – द्रोणागिरि को खण्डित कर लानेवाले ।
  943. शर्व: – शिवस्वरूप ।
  944. ईश्वर: – ईश्वरस्वरूप ।
  945. फलभुक्: – फल खानेवाली वानररूप ।
  946. फलहस्त: – जिनके करकमल में फल है ।
  947. सर्वकर्मफलप्रद: – सब कर्मों का फल प्रदान करनेवाले ।
  948. धर्माध्यक्ष: – धर्म-निधि के अध्यक्ष ।
  949. धर्मपाल: – धर्म का पालन करनेवाले । ।
  950. धर्म: – धर्मस्वरूप ।
  951. धर्मप्रद: – न्यायधर्म के दाता ।
  952. अर्थद: – अर्थ प्रदान करनेवाले ।
  953. पञ्चविंशतितत्त्वज्ञ: – पचीस तत्वों के यथार्थ ज्ञाता ।
  954. तारक: – भवसागर से तारनेवाले ।
  955. ब्रह्मतत्पर: – परब्रह्म में तत्पर ।
  956. त्रिमार्गवसति: – ज्ञानयोग , भक्तियोग और कर्मयोग – इन तीनों मार्गों के निवास-स्थल ।
  957. भीम: – भयंकरस्वरूप ।
  958. सर्वदुःख निबर्हण: – सारे दु:खों को दूर करनेवाले ।
  959. ऊर्जस्वान्: – बलशाली ।
  960. निष्कल: – निर्गुण ब्रह्मस्वरूप ।
  961. शूलि: – शूल धारण करनेवाले ।
  962. मौलि: – किरीट धारण करनेवाले ।
  963. गर्जन्निशाचर: – रात्रि में गर्जते हुए विचरण करनेवाले अर्थात् नि:शंक ।
  964. रक्ताम्बरधर: – लाल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
  965. रक्त: – लाल वर्णवाले ।
  966. रक्तमाल्य: – लाल रंग की माला से सुशोभित ।
  967. विभूषण: – अलंकारस्वरूप ।
  968. वनमाली: – वन्य पुष्पों की माला पहननेवाले ।
  969. शुभाङ्ग: – मंगलस्वरूप ।
  970. श्वेत: – श्वेत स्वरूप ।
  971. श्वेताम्बर: – शुक्ल वर्ण का वस्त्र धारण करनेवाले ।
  972. युवा: – सदा तरुणस्वरूप।
  973. जय: – विजेता ।
  974. अजयपरीवार: – जिसका विजय ही परिवार है ।
  975. सहस्रवदन: – सहस्त्र मुखवाले ।
  976. कपि: – कपिस्वरूप ।
  977. शाकिनी डाकिनी यक्षरक्षो भूतप्रभञ्जक: – शाकिनी, डाकिनी , यक्ष , राक्षस,भूत आदिका नाश करनेवाले ।
  978. सद्योजात: – तुरंत प्रकट होनेवाले।
  979. कामगति: -स्वच्छंद घूमनेवाले ।
  980. ज्ञानमूर्ति: – ज्ञान की साक्षात मूर्ति ।
  981. यशस्कर: – यशस्वी।
  982. शम्भुतेजा: – भगवान् शंकर के समान तेजस्वी ।
  983. सार्वभौम: – सब संसार के अधिपति ।
  984. विष्णुभक्त: – भगवान् विष्णु के भक्त।
  985. प्लवङ्गम: – मर्कटस्वरूप ।
  986. चतुर्नवतिमन्त्रज्ञ: – चौरानबे मंत्रों के ज्ञाता ।
  987. पौलस्त्यबलदर्पहा: – रावण के बल के घमंड को नष्ट करनेवाले ।
  988. सर्वलक्ष्मीप्रद: – सारे ऐश्वर्य को प्रदान करनेवाले ।
  989. श्रीमान: – सर्वैश्वर्यशाली ।
  990. अङ्गदप्रिय: – अंगद के प्यारे ।
  991. ईडित: – स्तुत्य ।
  992. स्मृतिबीजम् – स्मृतियों के बीज ।
  993. सुरेशान: – देवताओं के स्वामी ।
  994. संसार भय नाशन: – संसार के भय का नाश करनेवाले ।
  995. उत्तम: – श्रेष्ठ ।
  996. श्रीपरीवार: – श्री ( माता जानकी ) – के पुत्र ।
  997. श्रित: – आश्रयवान्।
  998. रुद्र: – रुद्रस्वरूप ।
    1000: कामधुक्: – सारी कामनाओं को पूर्ण करनेवाले ।

इति हनुमान सहस्त्रनामावली

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